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बुधवार, 5 नवंबर 2014

झरीं नीम की पत्तियाँ (दोहा-गीतों पर एक काव्य) (14) आधा संसार (नारी उत्पीडन के कारण) (क) वासाना-कारा (iii) काम-पशु

                                                                                 (सरे चित्र 'गूगल-खोज' से साभार)

                                     
नशा, व्यसन के हैं कई, कामी जन बीमार !
छल के फन्दे में फँसा, है आधा संसार !!
लोलुप-लम्पट काम-पशु, उच्छ्रंखल दनु-पुत्र |
जैसे होने लगे अब, मनु के कई कुपुत्र ||
इंसानी तहज़ीब यों, कर के मटियामेट !
भोली-भाली नारियों, का करते आखेट !!
कुचल शील को कुटिलता, का कर कुशल प्रहार !
 छल के फन्दे में फँसा, है आधा संसार !!1!!

डाल वासना-डोर को, रहे रूप-तन फाँस !
कुछ उलूक-सूत जो सदा, केवल धन के दास !!
कोमलता की लता पर, काम की पड़ी चपेट !
बेच लाज की पंखुड़ी, कलियाँ भरतीं  पेट !!
पिता नशेड़ी-जुवारी, पड़ी भूख की मार !
छल के फन्दे में फँसा, है आधा संसार !!2!!
मज़बूरी को भाँप कर, कई वासना-व्याध !
भूख मिटा कर पेट की, पूरी करते साध !!
कुछ नर छिन्नर कर्म के, करके कई कमाल !
रूप परिन्दे फाँसते, धन का दाना डाल !!
रस पी प्याली फ़ेंकते, ठगते हैं श्रृंगार !
छल के फन्दे में फँसा, है आधा संसार !!3!!

1 टिप्पणी:

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साहित्य समाज का दर्पण है |ईमानदारी से देखें तो पता चलेगा कि, सब कुछ मीठा ही तो नहीं , कडवी झाडियाँ उगती चली जा रही हैं,वह भी नीम सी लाभकारी नहीं , अपितु जहरीली | कुछ मीठे स्वाद की विषैली ओषधियाँ भी उग चली हैं | इन पर ईमानदारी से दृष्टि-पात करें |तुष्टीकरण के फेर में आलोचना को कहीं हम दफ़न तो नहीं कर दे रहे हैं !!

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