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सोमवार, 14 जुलाई 2014

झरीं नीम की पत्तियाँ (दोहा-गीतों पर एक काव्य) (3)गुरु-वन्दना(ख) गुरु-गुण-गान (vi) गुरु बिन मिले न ‘ज्ञान’ |



गुरु ‘भावना-लोक’ का, होता है ‘भगवान’ |
सब कुछ मिलता ‘जगत’ में, ‘गुरु’ बिन मिले न ‘ज्ञान’ ||
गुरुवर नरहरिदास जी, गुरु बल्लभाचार्य |
‘सन्त-प्रवर’ रविदास औ, ज्ञानेश्वर ‘आचार्य’ ||
मलिक मुहम्मद “जायसी”, नानक और कबीर |
तुलसी, मीरा, सूर ये, सारे ‘भक्ति-प्रवीर’ ||
सब ने सींचा ‘नीर’ बन, ‘अधर्म-रेगिस्तान’ |
सब कुछ मिलता ‘जगत’ में, ‘गुरु’ बिन मिले न ‘ज्ञान’ ||१||


सिक्खों के ‘दस गुरु’ हुये, बने ‘धर्म’ की ‘ढाल’ |
रहे बाँटते, ‘रोशनी’, बन कर ‘जली मशाल’ ||
जहाँगीर लखनऊ के, मुम्बई के मखदूम  |
भैसोढ़ी के हसनशाह, मची सभी की ‘धूम’ ||


यूहन्ना,मरकुस तथा, मत्ती, जोज़फ़, जान |
सब कुछ मिलता ‘जगत’ में, ‘गुरु’ बिन मिले न ‘ज्ञान’ ||२||


शिरडी के ‘साईं’ तथा, ‘राधा स्वामी’ ‘सन्त’ |
‘लोभ-कपट’-छल’ से अलग, थे ‘हृदयों’ के ‘कन्त’ ||
‘‘रामकृष्ण’ स्वामी हुये, ‘परमहंस’ अति ‘शुद्ध’ |
दयानंद करते रहे, ‘पाखण्डों’ से ‘युद्ध’ ||
ये  सारे ‘गुरु’ हो गए, ‘प्रसिद्द’ और ‘महान’ |
सब कुछ मिलता ‘जगत’ में, ‘गुरु’ बिन मिले न ‘ज्ञान’ ||३||

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2 टिप्‍पणियां:

About This Blog

साहित्य समाज का दर्पण है |ईमानदारी से देखें तो पता चलेगा कि, सब कुछ मीठा ही तो नहीं , कडवी झाडियाँ उगती चली जा रही हैं,वह भी नीम सी लाभकारी नहीं , अपितु जहरीली | कुछ मीठे स्वाद की विषैली ओषधियाँ भी उग चली हैं | इन पर ईमानदारी से दृष्टि-पात करें |तुष्टीकरण के फेर में आलोचना को कहीं हम दफ़न तो नहीं कर दे रहे हैं !!

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