Blogger द्वारा संचालित.

Followers

बुधवार, 28 नवंबर 2012

गंगा-स्नान/नानक-जयन्ती (कार्त्तिक-पूर्णिमा) (१) प्रदूषित प्रेम-गंगा


मेरे एक 'समस्या-प्रधान' काव्य- 'प्रश्न-जाल' से उद्धृत  
===================
 
किस तरह इस में नहायें ?
‘प्यास’ हम कैसे बुझायें ??
????????????????????
वासना के कलुष नालों से प्रदूषित प्रेम-गंगा |
कौन अब इसमें नहा कर रह सकेगा भला चंगा ??
‘स्वच्छ तन’ कैसे बनायें ?
‘स्वच्छ मन’ कैसे बनायें ??
किस तरह इस में नहायें ?
‘प्यास’ हम कैसे बुझायें ??१??
 
यह ‘मशीनी जिन्दगी’ है, ‘मनुजता’ प्रर ‘दाग’ जैसी |
‘प्यार की कोमल कली’ को, झुलस देती, आग जैसी ||
ठग रहीं ‘गन्धित हवायें |
कौन इन से ‘महक’ पाये ??
किस तरह इस में नहायें ?
‘प्यास’ हम कैसे बुझायें ??२??
 
चमकते हैं, दमकते हैं, ‘काँच से कच्चे इरादे’ |
‘रेत’ के महलों’ सरीखे, ढह रहे हैं कई ‘वादे’ ||
अब कहाँ हम सर छुपायें ?
और किसकी ‘शरण’ जायें ??
किस तरह इस में नहायें ?
‘प्यास’ हम कैसे बुझायें ??३??

कौन किस का ‘मीत’, किस का कौन ‘अपना’ ?
देखता है हर मनुज, ‘धन का ही सपना’ ??
किसे ‘सीने’ से लगायें ?
‘प्यार’ हम किस को जतायें ??
 किस तरह इस में नहायें ?
‘प्यास’ हम कैसे बुझायें ??४??
???????????????????????

1 टिप्पणी:

  1. बहुत अच्छा लिखा है सोचने पर विवश करती पोस्ट कब जन जागरण होगा अपनी गलतियों का सुधार कर फिर से प्रकृति को पहला सा सौंदर्य प्रदान करेगा बहुत बधाई आपको

    जवाब देंहटाएं

About This Blog

साहित्य समाज का दर्पण है |ईमानदारी से देखें तो पता चलेगा कि, सब कुछ मीठा ही तो नहीं , कडवी झाडियाँ उगती चली जा रही हैं,वह भी नीम सी लाभकारी नहीं , अपितु जहरीली | कुछ मीठे स्वाद की विषैली ओषधियाँ भी उग चली हैं | इन पर ईमानदारी से दृष्टि-पात करें |तुष्टीकरण के फेर में आलोचना को कहीं हम दफ़न तो नहीं कर दे रहे हैं !!

मेरे सभी ब्लोग्ज-

प्रसून

साहित्य प्रसून

गज़ल कुञ्ज

ज्वालामुखी

जलजला


  © Blogger template Shush by Ourblogtemplates.com 2009

Back to TOP